॥ श्रीहरि: ॥
॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम् ॥
ॐ श्रीगणेशायनम:
विनियोग:
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषि:
श्रीसीतारामचंद्रो देवता अनुष्टुप छन्द: सीता शक्ति:
श्रीमान हनुमान् कीलकं श्रीरामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोग:।
श्रीसीतारामचंद्रो देवता अनुष्टुप छन्द: सीता शक्ति:
श्रीमान हनुमान् कीलकं श्रीरामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोग:।
इस रामरक्षास्तोत्र मंत्र के रचयिता बुधकौशिक ऋषि हैं, सीता जी और श्रीरामचंद्र जी देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता जी शक्ति हैं, हनुमान जी कीलक है तथा श्री रामचंद्र जी की प्रसन्नता के लिए राम रक्षा स्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता हैं |
The author of this hymn is Sage BudhKaushik. The deity is Shri Sita
RaamChander. The meter is eight syllables in a quarter. The power is mother
Sita Ji. The protector is Shri Hanuman Ji. Recitation is for the devotion
of Shri Sita RaamChander Ji.
अथ ध्यानम्
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं
पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्
वामांकारूढसीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं
नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामंडलं रामचंद्रम् ॥
पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्
वामांकारूढसीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं
नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामंडलं रामचंद्रम् ॥
ध्यान धरिए — जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं,बद्द पद्मासन की मुद्रा में विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके प्रसन्न नेत्र नूतन कमल दल से स्पर्धा करते हैं, जो बाएँ ओर स्थित सीताजी के मुख कमल से मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम, नाना अलंकारों से विभूषित तथा विशाल जटाजूटधारी श्रीराम का ध्यान करें |
Concentrate - Who has arms reaching his knees, who is holding bow and arrows, who is seated in a lotus pose, who is wearing yellow clothes, whose eyes compete with petals of a fresh lotus, who looks contented. Whose sight is fixed on the lotus face of Sita Ji, who is on his left side. Whose color is like that of rain cloud. Who shines in various ornaments and has long matted hair. Concentrate on Shri RaamChander.
इति ध्यानम्
स्तोत्रम्
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥
श्री रघुनाथजी का चरित्र सौ करोड़ विस्तार वाला हैं | उसका एक-एक अक्षर महान पापो को नष्ट करने वाला है |
The life story of Shri Raam has a vast expanse. Recitation of each and every word is capable of destroying even the greatest sins.
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरांतकम् ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥
रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरांतकम् ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥
रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥
जो नीलकमल के श्यामवर्ण वाले, कमलनेत्र , जटाओं के मुकुट से सुशोभित, जानकी तथा लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान् श्री राम का स्मरण करके, उन अजन्मा एवं सर्वव्यापक, हाथों में खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण किए राक्षसों के संहार तथा अपनी लीलाओं से जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण श्रीराम का स्मरण करके,मैं सर्वकामप्रद और पापों को नष्ट करने वाले राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता हूँ, राघव मेरे सिर की और दशरथ के पुत्र मेरे ललाट की रक्षा करें |
Let us meditate on the blue lotus-eyed, dark-complexioned Shri Raam Ji, Who is accompanied with Sita Ji and Lakshman Ji and is well-adorned with crown of matted hairs. Who has sword, bows and arrows, who destroyed the demons. Who is birth less but is incarnated by his own will to protect this world. May the wise, read the Hymn of Lord Shri Raam, which destroys all sins and grants all desires. May Shri Raam, Raghu's descendant protect my head. May Shri Raam Dasharath's son protect my forehead.
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥
कौशल्यानंदन मेरे नेत्रों की, विश्वामित्र के प्रिय मेरे कानों की, यज्ञरक्षक मेरे घ्राण की और सुमित्रवत्सल मेरे मुख की रक्षा करें |
May Kausalya's son protect my eyes, may favorite of Vishwamiter protect my ears. May savior of sacrificial fire protect my nose, may affectionate to Lakshman Ji protect my mouth.
जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: ।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥
मेरी जिह्वा की विधानिधि रक्षा करें, कंठ की भरत-वंदित, कंधों की दिव्यायुध और भुजाओं की महादेवजी का धनुष तोड़ने वाले भगवान् श्रीराम रक्षा करें |
May the ocean of wisdom protect my tongue, may he who is saluted by Bharat Ji protect my neck. May bearer of celestial weapons protect my shoulders, may he who broke Lord Shiva's bow protect my arms.
करौ सीतापति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥
हाथों की सीता पति श्रीराम रक्षा करें, हृदय की जमदग्नि ऋषि के पुत्र (परशुराम) को जीतने वाले, मध्य भाग की खर (नाम के राक्षस) के वधकर्ता और नाभि की जांबवान के आश्रयदाता रक्षा करें |
May the husband of Sita protect my hands, may he who won over Parasuraam protect my heart. May the slayer of Demon Khar protect my abdomen, may he who gave refuge to Jaamvan protect my navel.
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥
मेरे कमर की सुग्रीव के स्वामी, हडियों की हनुमान जी के प्रभु और उरुऔ की राक्षस कुल का विनाश करने वाले रघुश्रेष्ठ रक्षा करें |
May master of Sugreev protect my waist, may master of Hanuman protect my hips. May the best of Raghu scions and destroyer of the lineage of demons protect my thighs.
जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तक: ।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥
मेरे जानुओं की सेतुकृत, जंघाओं की दशानन वधकर्ता, चरणों की विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले और सम्पूर्ण शरीर की श्रीराम रक्षा करें |
May the establisher of the Ramasetu protect my knees, may slayer of ten-faced Demon Raavan protect my shins. May the consecrator of wealth to Bibhishan protect my feet, may Shri Raam protect my all my complete body.
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत् ।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥
जो पुण्यवान पुरुष श्रीराम बल से संपन्न इस रक्षास्तोत्र का पाठ करता हैं, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील हो जाता हैं |
May the good man who reads this hymn enriched with power Shri Raam would live long, will be blessed with children and be victorious and possess humility.
पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिण: ।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥
जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरते रहते हैं अथवा छद्दम वेश में घूमते रहते हैं , वे राम नामों से सुरक्षित मनुष्य को देख भी नहीं सकते |
They who travel in the underworld, earth and heaven and who travel after changing their forms. Would not be able to see the man who is protected by Shri Raam's names.
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् ।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥
राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करने वाला पापों से लिप्त नहीं होता तथा वह भोग और मोक्ष को प्राप्त करता है
Raam, RaamBhader and RaamChander. One who remembers these names and more, never gets attached to sins and gets good life and salvation.
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥१३॥
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥१३॥
जो संसार पर विजय करने वाले मंत्र राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ कर लेता हैं, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं |
Mantra which is the world winner and protected by Shri Raam's name this hymn, One who learn it will get all the riches of this world.
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥
जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगल की प्राप्ति होती हैं |
Man who recites this hymn which is known as Vajrpanjar the Shield of Raam's name, he would be obeyed everywhere and he will get victory in all his endeavors.
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान्प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥
तथा लिखितवान्प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥
भगवान् शंकर ने स्वप्न में इस रामरक्षा स्तोत्र का आदेश जिस प्रकार बुधकौशिक ऋषि को दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागने पर उसे वैसा ही लिख दिया |
This protective hymn of Shir Raam was told by Lord Shiva to BudhKaushik in his dream And he wrote as it is in the following morning as he was told.
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान्स न: प्रभु: ॥१६॥
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान्स न: प्रभु: ॥१६॥
जो कल्पवृक्षों के बगीचे के समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियों को दूर करने वाले हैं और जो तीनो लोकों में परम सुंदर हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं |
Who is like a wish giving tree and who stops all obstacles And who is most beautiful in all three worlds that Shri Raam is our God.
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥
जो तरुण अवस्थावाले, सुन्दर, सुकुमार,महाबली और कमल के समान विशाल नेत्रों वाले हैं, चीरवस्त्र और कृष्ण मृग का चर्म धारण करते हैं, फल मूल आहर करनेवाले, संयमी, तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं, धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षसों के कुलों का समूल नाश करनेवाले, वे रघुश्रेष्ठ दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें |
Who are young, full of beauty, clever and very strong, who have broad eyes like lotus, who wear the hides of trees, who are subsisting on roots and fruits and practicing penance and celibacy, who are foremost among all the archers, who destroy whole race of demons, O best of scions of Raghu sons of Dashrath, two brothers Raam and Lakshman protect us.
आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषंगसंगिनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥
जिन्होंने संधान किया हुआ धनुष ले रखा है, बाण का स्पर्श कर रहे, अक्षय बाणो से युक्त तूणीर लिए हुए राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मार्ग में सदैव मेरे आगे चलें |
The two has their bows pulled and ready, their hands on the arrows packed in ever full quivers carried on their backs. May Shri Raam and Lakshman Ji protect me by leading the way.
संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥
गच्छन्मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥
सर्वदा उद्यत ,कवचधारी, हाथ में खडग, धनुष-बाण धारण किये तथा युवावस्था वाले भगवान् राम लक्ष्मण जी सहित आगे-आगे चलकर हमारे मनोरथो की रक्षा करें |
Young men prepared and armed with sword, shield, bow and arrows, May God Shri Raam and Lakshman lead us and protect our aspirations.
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित: ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित: ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥
(भगवान् का कथन है की) श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ, पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुत्तम, वेदान्तवेद्य , यज्ञेश, पुराणपुरूषोतम , जानकी वल्लभ, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम आदि नामों का नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करने से मेरा भक्त अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त करता है इसमें कोई संदेह नहीं है |
God says that Shri Raam, Dashrathi, Shur, Lakshmanachur, Bali, Kakutstat, Purush, Puran, Koselyeyo, Raghutam, Vedantved, Yageysh, Puranpurushotam, Janki Vallabh, Shriman and Apreyprakaram. My devotee who recites these names of Shri Raam regularly with faith, will get more than Ashwmed Yagya, there is no doubt in it.
रामं दूवार्दलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नराः ॥२५॥
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नराः ॥२५॥
जो लोग दूर्वादल के समान श्यामवर्ण, कमलनयन एवं पीतांबरधारी श्रीराम के इन दिव्य नामों की स्तुति करते है, वे संसारचक्र में नहीं पड़ते |
People who praise Shri Raam Ram who is dark-complexioned like leaf of green grass, who is lotus-eyed and dressed in yellow clothes, those people never gets trapped in the circle of world
रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् ।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिं
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् ।
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिं
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥
लक्ष्मणजी के पूर्वज, रघुकुल में श्रेष्ठ, सीताजी के पति, अतिसुन्दर, काकुत्स्थकुलनंदन, करुणा के सागर , गुण-निधान , विप्र भक्त, परम धार्मिक , राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथ के पुत्र, श्याम और शांत मूर्ति, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुल तिलक , राघव एवं रावण के शत्रु भगवान् राम की मैं वंदना करता हूँ |
The elder brother of Lakshman, best of the scions of the Raghu, the husband of Sita, handsome, Ocean of compassion, treasure of virtues, the most beloved of the religious people, Emperor of kings, follower of truth, son of Dashrath, dark-complexioned, idol tranquillity. I Salute to the crown jewel of the Raghu dynasty and the enemy of Raavan.
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥
राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधातस्वरूप , रघुनाथ, प्रभु एवं सीतापति को नमस्कार है |
I salute Raam, RamBhader, RamChander, VidhataSwaroop, Raghunaath and Husband of Sita.
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरत के अग्रज भगवान् राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ! आप मुझे अपनी शरण दीजिये |
Shri Raam the delight of the Raghus. Shri Raam the elder of Bharat. Shri Raam the tormentor of his enimiees. Shri Raam please give me your refuge.
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
मैं श्रीरामचंद्रजी के चरणों का मन से स्मरण करता हूँ , मैं श्रीरामचंद्रजी के चरणों का वाणी से गुणगान करता हूँ, श्रीरामचंद्रजी के चरणों को प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणों की शरण लेता हूँ |
I remember the feet of Shri RaamChander in my mind. I praise the feet of Shri RaamChander by my speech. I salute the feet of Shri RaamChander by bowing down my head. I take refuge on the feet of Shri RaamChander by bowing head to his feet.
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
श्रीरामचंद्रजी मेरे माता, श्रीरामचंद्रजी मेरे पिता , श्रीरामचंद्रजी मेरे स्वामी और श्रीरामचंद्रजी ही मेरे सखा हैं, दयामय श्रीरामचंद्रजी ही मेरे सर्वस्व हैं, उनके सिवा और किसी को मैं नहीं जनता बिलकुल नहीं जनता |
Shri RaamChander is my Mother, Shri RaamChander is my father. Shri RaamChander is my dearest friend is Shri RaamChander is my lord. My everything is merciful Shri RaamChander. I know of no other. I really don't!
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥
जिनके दाईं और लक्ष्मण जी, बायी और जानकी जी और सामने हनुमान जी विराजमान हैं, उन रघुनाथ जी की मैं वंदना करता हूँ |
Who has Lakshman Ji on his right and daughter of Janak (Sita Ji) on his left. And who has Hanuman Ji in his front, I salute that Lord of Raghu.
लोकाभिरामं रणरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥
जो सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीड़ा में धीर, कमलनयन , रघुवंश नायक, करुणा की मूर्ति और करुणा के भण्डार है, उन श्रीरामचन्द्रजी की मैं शरण लेता हूँ |
Cynosure of all people, courageous in war, lotus-eyed, lord of the Raghu. Personification of compassion, I take refuge of Lord Shri RaamChander.
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
जिनकी गति मन के समान और वेग वायु के समान है, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, उन पवन-नंदन वानारग्रगण्य श्रीराम दूत की मैं शरण लेता हूँ |
Who is as fast as the mind, equals wind in his speed, master of senses, foremost amongst brilliants. Son of the Wind, leader of the Monkey forces and messenger of Sri Raam, I take refuge to him.
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥
कवितामयी डाली पर बैठकर, मधुर अक्षरों वाले राम-राम के मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयल की मैं वंदना करता हूँ |
I salute Sage Valimiki, who sings the sweet name of Shri Raam as a Cuckoo siting on the tree of poem.
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥
आपतियो को हरने वाले था सब प्रकार की सम्पति प्रदान करने वाले लोकाभिराम भगवान् श्री राम को मैं बारम्बार नमस्कार करता हूँ |
Who is destroyer all dangers and consecrator of all sorts of wealth. I again and again salute that Shri Raam Ji, who is cynosure of all the people.
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥
‘राम-राम’ऐसा घोष करने से मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं | वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता हैं | राम-राम की गर्जना से यमदूत सदा भयभीत रहते हैं |
The roar of Shri Raam liberates man from pain, generates happiness and wealth. Scares Yama's (lord of death) messengers.
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम् ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम् ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥
राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं | मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम का भजन करता हूँ | सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूँ | श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं | मैं उन शरणागत वत्सल का दास हूँ | मेरा चित्त हमेशा श्रीराम मैं ही लीन रहे | हे श्रीराम! आप मेरा उद्धार कीजिये |
I worship Shri Raam whose is jewel among kings, who always wins and who is lord of Lakshmi. Who has destroyed demons I salute that Shri Raam. There is no one else for surrender greater than Shri Raam, I am servant of Shri Raam. My mind is totally absorbed in Shri Raam. O Shri Raam, please lift me from lower to higher self.
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥
(श्री महादेव पार्वती से कहते है –) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के तुलेय हैं | मैं सर्वदा "राम राम राम " इस प्रकार मनोरम रामनाम में ही रमण करता हूँ |
Shri Mahadev says to Mother Parvati - Raam name is equal to thousand names of Vishnu. I keep on chanting Raam Raam Raam, buy doing this I remain submerged in Raam name.
॥ इति रामरक्षास्तोत्र संपूर्णम् ॥
॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥